दिंनाक: 21 Nov 2018 16:14:50 |
बस अधर्म को हटा दो, धर्म स्वतः ही प्रकट और स्थापित हो जाएगा; गंदगी हटा दो स्वच्छता स्वतः ही आ जाएगी। उसे कहीं से लाकर स्थापित नहीं करना है, वो तो हमेशा ही से वही थी।
लेकिन स्वच्छता भी तो भिन्न भिन्न होती है - भोजन की थाली और कमरे की स्वच्छता भिन्न है, अतः उस प्राप्ति के लिए उपाय भी भिन्न है। महाभारत का युद्ध प्राचीन आदर्शों से नहीं जीता जा सकता था उसके लिए भिन्न उपाय आवश्यक थे। औषनस नीति भी कहती है, युद्ध राज्य की प्राप्ति या उसे बचाने के लिए किए जाते हैं, आचार की स्थापना के लिए नहीं, युद्ध के दौरान कई बार आचार छोड़कर उद्देश्य पर ध्यान लगाना पड़ता है। महाभारत में श्री कृष्ण ने भी भीष्म, द्रोण, कर्ण और दुर्योधन के समय धर्म स्थापना के उद्देश्य पर ध्यान लगाया। वो आपद्धर्म के पालन का क्षण था, उस समय उस पर चलना ही उचित था।
राष्ट्रनीति कई बार राष्ट्रवादी नागरिकों से श्री कृष्ण के बताए मार्ग पर चलने का आग्रह करती है, वो वीरता और व्यवहारिकता का आह्वान करती है। वो उन तमाम अपमानों, अत्याचारों, क्रूरता पूर्वक नष्ट कर दिये गए सपनों, भुला दिये गए राष्ट्रनायकों का प्रतिशोध चाहती है। तो क्या ऐसे समय हम जड़ता और पलायन की उसी प्रवृत्ति को अपने ऊपर हावी होने देंगे जैसी युद्ध पूर्व अर्जुन पर हावी हो रही थी? अब श्रीकृष्ण गीता उपदेश देने नहीं आएंगे, सभी को अपना कृष्ण स्वयं बनना होगा।
ये चुनाव की बेला है, समर का समय है। ये महाभारत है, जहां व्यक्ति नहीं पक्ष मायने रखता है, यहाँ संघर्ष में शिखंडी भी उपयोगी होते हैं और घटोत्कच भी। अब युद्ध के नियम बदल चुके हैं, आज व्यक्ति से ज़्यादा दल की अच्छाई या बुराई मायने रखती है। पं. दीनदयाल उपाध्याय ऑर्गनाइज़र में छपने वाले अपने स्तम्भ "पॉलिटिकल डायरी" के दिसंबर ११, १९६१ के अंक "आपका मत - प्रत्याक्षी, दल और सिद्धान्त - सभी महत्वपूर्ण" में जहां व्यक्ति के अच्छे होने का पक्ष लेते हैं वहीं वो यह भी कहते कि "आपको एक अच्छा मनुष्य चाहिए, पर अच्छा मानव भी किसी बुरे दल में रहकर प्रभावकारी नहीं सिद्ध होगा। बड़ा से बड़ा वीर भी टूटे या भोथरे हथियार के सहारे सफल नहीं होगा।" आगे वो यह भी कहते हैं कि अच्छे लोग भी अव्यवहारिक कार्यक्रम के साथ जनता के कष्ट दूर करने के बजाय उसे बढ़ा ही देंगे।
तो यदि किस राष्ट्रवादी दल के समर्थक उसे राजनैतिक रूप से सफल भी देखना चाहते हैं, तो व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुये उन्हे बिना किसी भ्रम या संशय में पड़े, दल को ध्यान में रखते हुये वोट करना चाहिये।