दिंनाक: 06 Oct 2020 17:00:44 |
राज किशोर वाजपेयी"अभय"
राष्ट्र -साधना का सच्चा स्वरूप देखना हो तो मामा माणिकचंद वाजपेयी के जीवन-वृत से देखा जा सकता है। उनका जीवन आडम्बरहीन सहज सेवा भावी, और ध्येय के प्रति समर्पित था। वे आत्म-प्रवंचना से सदैव दूर ही रहे।
7 अकटूबर 1919 को बटेश्वर ग्राम जिला आगरा में जन्मे माणिकचंद वाजपेयी जी की प्रारम्भिक शिक्षा अपनी बहन, (जो मुरार ग्वालियर में रहती थी)
के यहाँ हुई। वे मेधावी छात्र थे, मिडिल परीक्षा में वे ग्वालियर रियासत में प्रथम स्थान पर रहे थे,
व इंटर अजमेर बोर्ड की परीक्षा में उन्हें स्वर्ण -पदक भी प्राप्त हुआ था। आगे उन्होनें बी. ए.,
एल- एल. बी. तक शिक्षा प्राप्त की।
माणिक चंद जी बने मामाजी:
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में प्रारंभ से ही आ गये थे, जहाँ से उसमें राष्ट्र-प्रेम और राष्ट्र-साधना का ऐसा रंग चढ़ा,जो आजन्म चढ़ा ही रहा। जब वे संघ की शाखा जाते थे, तो उनके साथ उनकी बहन के पुत्र (भांजे)भी शाखा, साथ में चले जाते थे, वे उन्हें मामाजी कहते,तो संघ स्थल व अन्य परिचित उन्हें मामाजी ही कहने लगे, और वे सभी के मामा के रुप में प्रसिद्ध हो गये।
खांटी देशी व्यक्तित्व के धनी: चेहरे पर घनी बड़ी बड़ी मूछें,धोती कुर्ता पहनने बाले मामा जी ने कभी इस की परबाह नही की कि कपड़े पर प्रेस हो, बटन यथास्थान लगे हों, समाज सेवा, राष्ट्र -सेवा मेंलगे परम- हंस योगी शायद ऐसे ही होते है।
वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, राष्ट्र -देवता के साधक थे, संघ, और संगठन उनकी चर्या था।
1944से 1953तक वे संघ के प्रचारक रहे, 1951में भारतीय जनसंघ की स्थापना होने पर संगठन के निर्देश पर वे उत्तरी मध्य -भारत के संगठन मंत्री, स्वदेशी जागरण मंच के मध्य-भारत के प्रांत-संयोजक भी रहे।
शिक्षक के रूप में मामाजी:
1950 से दस बर्षो तक लहरौली( जिला भिंड)के विद्यालय में अध्यापन कार्य किया, इसके बाद में ग्वालियर के विद्यालय विद्यालय में प्रधानाध्यापक भी रहे। वे व्यक्तित्व निर्माण में रूचि रखते थे, हर विद्यार्थी और शिक्षक, कार्यकर्ता की चिंता करना, उनकी रुचि का क्षेत्र था।
पत्रकार मामा माणिक चंद वाजपेयी:
मामाजी का पत्रकार जीवन अधिक चर्चित और प्रभावी रहा जबकि वे प्रभावी लेखक और अजातशत्रु राजनेता भी रहे। वे राजमाता विजया राजे सिंधिया और श्री नरसिह राव दीक्षित के विरुद्ध जनसंघ दल के प्रत्याशी भी रहे,उनके संस्कारित आचार -व्यबहार के प्रशंसक उनके धुर विरोधी भी रहे। राष्ट्र -हित और राष्ट्र सेवा का विचार ही था, जो उन्हें प्रेरणा देता था। पद-लिप्सा और धन -लिप्सा से वे कोसों दूर थे। आपात-काल के बाद जब उन्हें भिंड से चुनाव लड़ने की बात आयी तो उन्होनें श्री रघुवीर जी का नाम प्रस्तावित कर दिया ,दुबारा अवसर आने पर उन्होने श्री राम लखन जी का नाम प्रस्तावित कर दिया था, जो सांसद भी रहे।
ऐसे मामाजी का पत्रकार जीवन भिंड के "देश-मित्र"नामक साप्ताहिक से शुरू हुआ। 1966में संगठन के निर्देश पर वे इंदौर से शुरु हुये "स्वदेश"समाचार-पत्र" से पत्रकार के रुप में जुड़े और1968 से1985 तक उसके संपादक का पदीय दायित्व निबाहते रहे।उसके बाद स्वदेश के ग्वालियर, सतना, जबलपुर संस्करणों के सलाहकार संपादक भी रहे। उन्होने अपनी कार्य-पद्धति से विचारवान, राष्ट्रीय विचार-धारा के पत्रकारों की नयी पीढ़ी तैयार करने में प्रभावी भूमिका निभाई। जिसके मुखर गवाह प्रसिद्धि प्राप्त पत्रकारिता पुरुष सर्ब श्री राजेन्द़ शर्मा, जयकिशन शर्मा, बल्देव भाई,प्रभात झा,कृष्ण कुमार अष्ठाना ,गिरीश उपाध्याय जैसे नाम प्रमुखता से लिये जा सकते है। उनसे प्रभावित सैकड़ों पत्रकारों की मिशन पत्रकारिता की पृष्ठभूमि को सहज ही देखा जा सकता है।
पत्रकार के रुप मे माताजी की लिखी विचारोत्तेजक लेखमालाऐं"केरल में मार्क्स नहीं महेश",राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने विधान के आने में","समय की शिला पर"खूब चर्चा रही थी।
लेखक के रूप में मामाजी:
संघ गाथा हो या राष्ट्रीय भावों की अभिव्यक्ति माताजी के रचित ग्रंथः में दर्शनीय है, प्रेरक और सूचनाप्रद भी। उनकी कृतियाँ:आपात-कालीन संघर्ष की गाथा, प्रथम अग्नि -परीक्षा (संघ पर प्रतिबंध पर), भारतीय नारी विवेकानंद की दृष्टि में, कश्मीर का कडुवा सच, ज्योति जला निज प्राण की, मध्य-भारत की संघ गाथा इतिहास और बिचार की अनुपम झाँकी है।
वे अटल जी की उस पंक्ति को चरितार्थ करते नजर आते है, जिसमें अटल जी ने अपने सत्य के साथ निष्ठा व्यक्त करते हुये अपनी रचना में लिखा हैं कि"टूट सकते है मगर हम झुक नही सकते",आपात -काल के विरोध करने पर वे 20माह कारावास में भी रहे। इसी दौरान उनकी धर्म-पत्नी की भी मृत्यु हुई थी।
संघ-दर्शन, और राष्ट्र निष्ठा के साथ उनकी सक्रियता उनके केंसर ग्रस्त होने, हृदय रोगी होने पर भी कभी कम नही हुई।
उनका जीवन राष्ट्र सेवा में ही गृहस्थ संयासी के रुप में ही बीता।
नागरिक अभिनंदन और सम्मान:
जीवन के 75बर्ष पूर्ण होने पर उनके कार्य और समर्पण के कारण भिंड में और अटल जी द्वारा प्रधानमंत्री कार्यालय में अभिनंदन समारोह का आयोजन किया गया था। भिंड समारोह में तत्कालीन संघ प्रमुख आदरणीय सुदर्शन भी उपस्थित रहे थे।
2005 में श्री कुमार सभा बड़ा बाजार, कोलकता द्वारा "डा. हेडगेवार प्रज्ञा पुरुस्कार" मामा माणिक चंद वाजपेयी जी को प्रदान किया गया।
भारतीयता की जीवंत छबि युक्त मामा माणिक चंद वाजपेयी जी का जीवन निस्स्पृह भाव का ऐसा उपवन था जिसमे, समाज सेवा, साहित्य सेवा और जीवन मूल्यों के सुगन्धित पुष्प खिलें,साथ ही उन्होंनें अपने जीवन दीप से हजारों ऐसे जीवन दीप भी जलाऐ, जो राष्ट्र -पथ को आलोकित करने की परंपरा का निर्वहन करते रहेगें।