डॉ. भीमराव अम्बेड़कर और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

वर्ष 1948 में जब संघ पर प्रतिबंध लगा हुआ था तब गुरूजी और डॉ. अम्बेडकर जी मिले थे

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    14-Apr-2022
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sangh with ambedkar
 
डॉ. निमिषा-
 
भारत जननी ने अपने प्रांत महाराष्ट्र में ऐसे दो रत्नों को जन्म दिया है, जिन्होंने माँ का कायाकल्प किया। एक डॉ. भीमराव राम जी सकपाल अम्बेड़कर दूसरे डॉ. केशव राव बलीराम हेडगेवार। राष्ट्र की सामाजिक चेतना को जागृत कर विदेशी साम्राज्यवाद के कालखण्ड में दोनों महापुरूषों ने अपने जीवन का सर्वस्व अर्पित कर देश, समाज के लिए जीना सिखाया। दोनों ने जीवन में अभाव व पीड़ाओं के संघर्ष से तप कर भारतीय समाज को समरसता का मार्ग दिखाया।
 
डॉ. अम्बेड़कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में भलीभांति जानते थे। अन्य संस्थाओं के ओर संघ के कार्य में अन्तर भी उनको ज्ञात था। उनकी डॉ. हेडगेवार से 1936 से 1939 के मध्य चार बार भेंट हुई थी। युगदृष्टाओं की भेंट महाराष्ट्र के पुणे में पहली बार हुई जहां 13 जनवरी 1936 को मकर सक्रांति के उत्सव पर डॉ. हेडगेवार के आग्रह पर अध्यक्षता करने डॉ. अम्बेडकर आये, उत्सव के पश्चात् सभी स्वयंसेवकों से डॉ. अम्बेड़कर जी ने बातचीत की। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में उनके मन में बहुत जिज्ञासा थी। बाबा साहब अपने वकालात कार्य से दापोली गए तो वहां भी संघ शाखा में स्वयंसेवकों से अनेक सामाजिक विषयों पर चर्चा की। वर्ष 1937 में संघ के विजयादशमी उत्सव के समय करहाड़ की संघ शाखा पर भी सान्निध्य देकर आये थे।
 
वर्ष 1939 में संघ के शिक्षा वर्ग में पहली बार बाबा साहब को निरीक्षण हेतु आमंत्रित किया गया, सवा पांच सौ पूर्ण गणवेषधारी स्वयंसेवक संघ स्थान पर अभ्यास कर रहे थे। बाबा साहब ने जिज्ञासापूर्ण प्रश्न पूछा कि इनमें अस्पृश्य स्ंवयसेवक कितने हैं? डॉ. हेडगेवार ने कहा ’चलिए घूम कर देखते हैं।’
 
डॉ. भीमराव ने कहा- ’स्वयंसेवकों की टोली में तो कोई अस्पृश्य तो नहीं दिख रहा। डॉ. हेडगेवार ने कहा - आप पूछ लें, तो उत्सुकता से बाबा साहब ने पूछा आप में से जो अस्पृश्य हो, वे एक कदम आगे आ जाएं। उस पंक्ति में से एक भी स्वयंसेवक आगे नहीं आया। बाबा साहब ने प्रश्नवाचक दृष्टि से डॉ. हेडगेवार को देखा और कहा - ’’ये देखिए’’, इस पर डॉ. हेडगेवार ने कहा हमारे यहां कोई अस्पृश्य है ही नहीं, आप अपना अभिप्रेत जानने के लिए कुछ जातियों के नाम लेकर उनसे पूछे तब बाबा साहब ने स्वयंसेवकों से प्रश्न किया- इस वर्ग में कोई हरिजन, महार, चमार हो, तो एक कदम आगे आए। ऐसा आदेश होने पर लगभग सौ स्वयंसेवकों ने एक कदम आगे बढ़ाया। संघ के शिक्षा वर्ग में स्वयंसेवक जातिगत भेदों से परे अपने में समरसता का भाव जगा रहे थे।
 
यही कार्य डॉ. हेडगेवार ने संघ के माध्यम से मौन स्वरूप में प्रारंभ कर दिया। डॉ. हेडगेवार के मन में बाबा साहब के प्रति सम्मान था। अतः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बाबा साहब के विचारों में अद्भुत समानता है। संघ में सामाजिक समरसता और अस्पृश्यता का नामोनिशान ना देखकर डॉ. अम्बेडकर बहुत प्रसन्न होते थे।
 
ऐसा ही एक प्रसंग हुआ जब डॉ.अम्बेड़कर को संघ की स्वाधीनता आंदोलन में सहभागिता की अनुभूति हुई, जब वे मिलिंद महाविद्यालय के प्राध्यापक की चयन प्रक्रिया के साक्षात्कार समय में एक स्वयंसेवक से उन्होंने पूछा इससे पूर्व आप क्या काम करते थे ?
 
स्वयंसेवक ने प्रत्युत्तर दिया ’’मैं नासिक के महाविद्यालय में प्राध्यापक पद पर कार्यरत था संघ के स्वाधीनता सत्याग्रह में भाग लेने के कारण मेरी नौकरी गई। उक्त उत्तर को सुनकर बाबा साहब ने स्वयंसेवक को प्रफुल्लित होकर शाबाशी दी ओर कहा कि तुम्हारी संघ के प्रति निष्ठा स्वाधीनता के सत्याग्रह में हिस्सा लेकर प्रमाणित हो गई, मैंने तुम्हारा चयन ठीक ही किया।
 
गुरूजी से सम्पर्क
 
गुरूजी ने उनके लिए कहा कि डॉ. अम्बेड़करजी ने समाज की भलाई के लिए दोषमुक्त व शुद्ध बनाने की दृष्टि से जो काम किया है अतः वह भगवान बुद्ध के उत्तराधिकारी हैं इस स्वरूप में उनकी पवित्र स्मृति में अपना हार्दिक प्रणाम करता हूँ। गुरूजी मानते थे कि बाबा साहब ने अपमानित समाज के महत्वपूर्ण भाग को आत्मसम्मानपूर्वक खड़ा करके राष्ट्र के उपर असीम उपकार किया है।
 
वर्ष 1948 में जब संघ पर प्रतिबंध लगा हुआ था तब भी गुरूजी, डॉ. अम्बेडकर जी से मिले थे। सभी तथ्य उनके समक्ष रखे और संघ पर जब प्रतिबंध हटा तो गुरूजी ने उनको कृतज्ञता पत्र भेजा डॉ. अम्बेडकर की संकल्पना में हिन्दु समाज की एकात्मता थी जिसमें जाति व्यवस्था में आये अतिवाद से मुक्त करवाने का प्रयास उन्होंने आजीवन किया। वह मानते थे कि प्रयास दोनों वर्गों से होना चाहिए।
 
वर्ष 1924 में मुम्बई में आयोजित बहिष्कृत कार्यकारिणी सभा में बाबा साहब ने कहा कि अस्पृश्यता केवल एक वर्ग के प्रयास से दूर नहीं होगी। सम्पूर्ण हिन्दु समाज को मिलकर और विशेषकर जो अस्पृश्यता करते हैं उनकी मानसिकता में परिवर्तन आवश्यक है। इसी प्रकार का भाव 25 नवम्बर 1947 के दिल्ली के भाषण में था।
 
ठैंगड़ी के साथ घनिष्ठता
 
संघ प्रचारक व प्रखर चिंतक दत्तोपंत जी ठैंगड़ी के भारत रत्न डॉ. अम्बेड़कर जी से निकट संबंध रहे। उन्होंने बाबा साहब की कार्य पद्धति को निकट से देखा और उन्हें गहराई से समझा। अनेकानेक विषयों पर लंबी और गंभीर चर्चायें भी की। वर्ष 1952 के चुनाव में भारतीय जनसंघ के मध्यप्रदेश प्रांत के संगठन मंत्री के रूप में उन्होंने अम्बेड़कर जी द्वारा स्थापित शिड्यूलकास्ट फेडरेशन तथा समाजवादी पार्टी के साथ संयुक्त मोर्चा बनाया।
 
दत्तोपंत ठेंगड़ी डॉ. भीमराव अंबेडकर के चुनाव एजेंट भी बने थे तब किसी ने उनसे पूछा कि दत्तोपंत अनुसूचित वर्ग के नहीं हैं इस पर डॉ. अम्बेड़कर ने कहा मुझे दत्तोपंत से अधिक यदि कोई अनुसूचित वर्ग का व्यक्ति मिलेगा तो मैं उसे चुनाव एजेंट स्वीकार कर लूंगा। तब से लगातार 1956 के कालखंड में दोनो ने मिलकर कार्य किया। बाबा साहव के विचार थे कि संघ कार्य को अनुसूचित वर्ग तक पहुँचाने में जितना समय लगेगा उतना समय मेरे पास नहीं है। अब शोषित पीड़ित समाज जग चुका है।
 
अन्यथा यह समाज आसानी से साम्यवाद का शिकार बन जायेगा। यह निश्चित है कि अनुसूचित जाति, जनजाति के युवाओं व साम्यवाद के मध्य मुझे दीवार बनना होगा। शेष युवाओं को साम्यवाद के मायाजाल से बचाने के लिए गुरूजी दीवार बने, जिससे मेरी मृत्यु से पूर्व शोषित वर्ग को एक दिशा मिल सके। 1953 में जब दत्तोपंत जी आदि कार्यकर्ता मिलने गए तब संघ के सारे कार्य प्रगति विस्तार को समझकर उन्होंने कहा की आप लोगों का कार्य सही दिशा में है किन्तु गति बहुत धीमी है। 
 
बालासाहब व बाबा साहब
 
डॉ. अम्बेडकर की जन्म शताब्दी वर्ष 14 अप्रैल 1990 में तत्कालीन सरसंघचालक डॉ. बाला साहब देवरस कहते हैं कि बाबा साहब के विचारों तथा जीवन से प्रेरणा लेकर भारतीय जनतंत्र, राष्ट्रीय एकात्मता और सामाजिक एकता को मजबूत बनाने का प्रयास करना चाहिए और निर्मल मन से बाबा साहब के कार्य का मूल्यांकन करना चाहिए। वर्तमान सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने भी दीक्षा भूमि पर जाकर दर्शन किए। संघ के सभी कार्यालयों पर सभाकक्ष में लगे चित्र की श्रृंखला में डॉ. अंबेडकर का चित्र प्रायः दिखता है। संघ ने एकात्मता स्तोत्रम् के तीसवें श्लोक में (ठक्करो भीमरावश्व, फुले नारायणो गुरूः) प्रतिदिन उनका स्मरण कर, उनको प्रातःस्मरणीय मानते हैं।
 
संघ के द्वारा भारत के विचार केंद्रित छपने वाली पत्र पत्रिकाएं पुस्तकों में डॉ. अंबेडकर जी के समग्र विचार जो कि उन्होंने कहे, उसे मूलस्वरूप में ही दिए जाते हैं अंबेडकर जयंती एवं स्मृति दिवस पर अनेक कार्यक्रम गोष्ठियाँ आदि रखी जाती हैं। सार्वजनिक स्थानों पर प्रतिमाएं लगवाना एवं स्थापित प्रतिमाओं की देखरेख स्वच्छता आदि का ध्यान रखना उनके नाम पर शाखओं के नाम होना एवं उनके जीवन से संबंधित पंचतीर्थ हो या कुछ जानना व दर्शन करना संघ से जुड़ा प्रत्येक स्वयंसेवक यह कार्य करता है।
 
वैचारिक समानता
 
संविधान में हिन्दू की व्याख्या करते समय जो उन्होंने परिभाषा दी है जिसके अंतर्गत वैदिक मतावलंबी शैव, वैष्णव, जैन इत्यादि को सम्मिलित कर हिन्दु समाज की व्यापकता का संदेश दिया। आपने विधि मंत्री के रूप में हिन्दू कोड बिल का प्रस्ताव रखा। बाबा साहब द्वारा हमारे समाज का मूल यही है कि उक्त प्रस्तावों को दृढ़तापूर्वक प्रतिपादित किया जाए। आर्य अर्थात श्रेष्ठ, आर्य बाहर से आए ऐसे सिद्धांतों का खंडन किया।
 
उच्च कहलाने वाली जातियों का विरोध नहीं अपितु सामाजिक विषमता का विरोध बाबा साहब की कार्य पद्धति में था। संस्कृत राज भाषा बने, जिससे संस्कृत का विस्तार व व्यवहारिक उपयोग हो। भारत का ध्वज केसरिया हो। बाबा साहब अखण्ड भारत के प्रबल समर्थक थे, पाकिस्तान निर्माण का पुरजोर विरोध किया किन्तु जब पाकिस्तान का विभाजन हो गया तो मुस्लिम जनसंख्या का पूर्ण हस्तांतरण हो ऐसे उनके विचार थे। वे मतांतरण को भारत के लिए घातक मानते थे।
 
अल्पसंख्यक बहुसंख्यक शब्दों का भ्रम दूर कर सटीक भाषा स्थापित करना आवश्यक समझते थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की वर्ष 2015 की प्रतिनिधि सभा का उद्घोष ’’एक मंदिर, एक कुआं और एक शमशान यह स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के नारे का नया और प्रभावी व व्यावहारिक संस्करण है जो डॉ. अंबेडकर के सपनों को पूर्णता प्रदान करने की असीम संभावना की अभिव्यक्ति करता है।
 
डॉ. भीमराव अंबेडकर एवं डॉ. हेडगेवार की कार्य करने की पद्धति अलग-अलग हो सकती है लेकिन उनके लक्ष्य एवं दिशा एक ही थे।