2 जनवरी 1950 सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और समाज सेवी डॉ राधाबाई का निधन

02 Jan 2024 17:52:38
राधा बाई
 
रमेश शर्मा- 
 
प्रसिद्धि स्वतंत्रता सेनानी तथा समाज सुधारक राधा बाई ने एक ओर स्वतंत्रता संग्राम में अनेक जेल यात्राएँ वहीं सामाजिक जागरण विशेषकर वेश्यावृत्ति के लिये विवश की जाने वाली महिलाओं के उत्थान और आत्मनिर्भर बनाने और सामाजिक सम्मान की दिशा में अपना जीवन समर्पित कर दिया।
 
राधाबाई महाराष्ट्र की रहने वालीं थीं। उनका पूरा जीवन छत्तीसगढ़ में बीता। वे पेशे से नर्स थीं लेकिन अपने पूरे परिवेश में डाक्टर राधाबाई के नाम से प्रसिद्ध थीं। वे 1930 से स्वतंत्रता के लिये किये जाने वाले अहिसंक आँदोलन से जुड़ीं और उन्होंने 1942 तक हर 'सत्याग्रह' में भाग लिया एवं जेल गईं।
 
राधाबाई का जन्म 1875 को महाराष्ट्र के नागपुर में हुआ था। तिथि का उल्लेख नहीं मिलता। जब वे मात्र नौ वर्ष की थीं तब 1884 में उनका बाल विवाह हो गया था। पर उनका दाम्पत्य जीवन नहीं चल सका। उनकी पहली विदा होने से पहले ही पति की मृत्यु हो गई। किसी बीमारी में माता पिता की भी मृत्यु हो गई। उनका पालन पोषण पड़ौसिन ने किया।
 
समय के साथ परिश्रम आरंभ किया और दाई का काम सीखा। समय के साथ प्राकृतिक जड़ी बूटियों से उपचार करना भी सीख लिया। वे गर्भस्थ महिलाओं की छोटी मोटी समस्याओं का उपचार जड़ी बूटियों से कर देतीं थीं और उनके साथ के प्रसव भी सफल होते। इसलिये अपने आसपास डाक्टर राधाबाई के नाम से प्रसिद्ध हो गईं।
 
वे 1918 में रायपुर आईं और नगरपालिका में दाई का काम करने लगीं। प्रसव पीड़िताओं के साथ उनका व्यवहार, गुणवत्ता के कारण वे बहुत लोकप्रिय हो गईं।
 
सन 1920 में महात्मा गाँधी पहली बार रायपुर आये, गाँधी जी सभा हुई। वे सभा सुनने गईं और आँदोलन से जुड़ गईं। तब से राधाबाई ने हर प्रभात फेरी और सभाओं में न केवल भाग लेतीं अपितु प्रचार कार्य में जुड़ गई। 1930 में पहली बार गिरफ्तार हुईं और इसके बाद उन्होंने 1942 तक हर सत्याग्रह भाग लिया। अनेक बार जेल गईं।
 
स्वतंत्रता आन्दोलन के साथ उन्होंने दो अभियान चलाये एक अस्पृश्यता निवारण का और दूसरा कामगारों की बस्ती में सफाई अभियान। वे सफाई कामगारों की बस्ती में जाती और स्वयं केवल सफाई ही नहीं करतीं थीं अपितु उनके बच्चों को नहलाने और पढ़ाने का काम भी करतीं थीं। उन्होंने उन बस्तियों में ही ऐसे कार्यकर्ता तैयार किये जो सफाई और बच्चों को शिक्षा देने का कार्य करने लगे । वे केवल रायपुर नगर तक ही सीमित न रहीं। एक टोली बनाकर आसपास भी जातीं।
 
उन्होने धमतरी तहसील के अंतर्गत कंडेल गाँव में एक चरखा केन्द्र भी खोला । चरखा वे स्वयं भी चलातीं और चरखे से खादी तैयार कर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का काम करतीं। उन्होने चरखा पर अनेक गीत तैयार किये तथा चरखा चलाने के साथ सब के साथ गीत भी गातीं "मेरे चरखे का टूटे न तार, चरखा चालू रहे।" चरखा सिखाने के लिये उन्होने एक टोली भी तैयार की जिसमें पार्वती बाई, रोहिणी बाई, कृष्ण बाई, सीता बाई, राजकुँवर बाई आदि थीं। ये सभी महिलाएँ 1942 के भारत छोड़ो आँदोलन में जेल भी गईं।
 
उन दिनों छत्तीसगढ़ में महिलाएँ ब्लाउज नहीं पहनतीं थीं। जबकि महाराष्ट्र विशेषकर नागपुर में पहना जाता था । राधाबाई ने महिलाओं को ब्लाउज पहने के लिये प्रेरित किया । उन्हे अपने समय के सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित सुन्दर लाल की पत्नि की पत्नि श्रीमती बोधनी बाई का साथ मिला और महिलाओं में जाग्रति अभियान तेज चलने लगा।
 
उन दिनों छत्तीसगढ़ में एक प्रथा 'किसबिन नाचा' थी। यह एक प्रकार की वेश्यावृत्ति थी राधाबाई ने इस प्रथा के उन्मूलन का काम आरंभ किया। राधाबाई ने इस पृथा के उन्मूलन की शुरुआत 1944 से आरंभ की थी और अपने जीवन की अंतिम श्वाँस तक करती रहीं। वस्तुतः छत्तीसगढ़ के गाँवों और नगरों में एक सामंती प्रथा थी जिसमें नृत्य के लिये जो महिलाएँ आतीं थीं उनका शारीरिक शोषण भी होता था । इसे "किसबिन नाचा" कहा जाता था।
 
"किसबिन नाचा" करने वालों का एक वर्ग ही बन गया था। जैसे राजस्थान और मालवा में कभी बाछड़ा वर्ग हुआ करता था । वैसे ही छत्तीसगढ में यह किसबिन नाचा वर्ग बन गया था। इस वर्ग के लोग अपने ही परिवार की लड़कियों को 'किसबिन नाचा' के काम में लगा देते थे।
 
इस वर्ग की लड़कियाँ भी मानों यही काम अपनी नियति समझती थीं। राधाबाई और उनकी टोली ने इस प्रथा को समाप्त करने का अभियान चलाया । इसकी शुरुआत खरोरा नामक गाँव से हुई। महिलाओं को चरखा चलाने के काम में लगाया और पुरुषों को खेती-बाड़ी के काम में। यह परिवर्तन राधाबाई के कारण ही संभव हुआ।
 
इसके लिये स्वतंत्रता के बाद राधा बाई का सम्मान किया गया। अपना पूरा जीवन समाज और राष्ट्र को समर्पित करने वाली राधाबाई का निधन 2 जनवरी,1950 को हुआ। वे अकेली रहतीं थीं। उन्होंने जीवन काल में अपना मकान अनाथालय को देने की बसीयत कर दी थी । उनके निधन के बाद उनकी बसीयत के अनुसार उनका मकान एक अनाथालय को दे दिया गया।
Powered By Sangraha 9.0