पिंकेशलता रघुवंशी -
विजया दशमी शक्ति की उपासना और आराधना का दिन, वह दिन जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना के शताब्दी वर्ष में प्रवेश करने जा रहा है। 1925 में विजया दशमी के दिन डा. केशव बलिराम हेडगेवार जी ने नागपुर में एक छोटे से स्थान मोहिते के बाड़े में एक विशाल वट वृक्ष का बीजारोपण किया था. पराधीन भारत में देखा गया एक ऐसा स्वप्न जिसमें पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ी भारत माता को परम वैभव के पद पर आसीन करने की संकल्पना थी। अपने 100वे वर्ष में प्रवेश कर रहे संघ ने संभवत माँ भारती के गौरव की इस यात्रा के अनेक पड़ावों को पार कर स्वाभिमानी भारत की ऐसी संकल्पना को साकार भी कर लिया है और संपूर्ण विश्व को आश्वस्त भी कर दिया है कि हर वैश्विक समस्या का समाधान अब भारत के माध्यम से ही संभव हो पायेगा, किंतु शताब्दी वर्ष में प्रवेश करने वाली संघ की ये सतत साधना, अनवरत यात्रा इतनी सहज भी नहीं रही l स्वाधीनता के उपरांत अपनों के ही असंख्य प्रहारों, दुष्प्रचारों और आघातों को मौन होकर सहन करते हुए प्रखर राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की अलख जगाता हुआ ये संगठन समस्त भारत को एक सूत्र में पिरोने के भाव के लिए संकल्पित है । भारत ही नहीं भारत की सीमाओं से परे 39 देशों में संघ सेवा संगठनों के माध्यम से भी सक्रिय है ।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जिसके संक्षिप्त नाम 'आर एस एस' से विश्व समाज भली भाँति परिचित है, किंतु यहाँ बात एक और आर एस एस की जिसने भी आज ही के दिन विजया दशमी को संघ से 11 वर्ष बाद संघ की ही प्रेरणा से वर्धा में लक्ष्मी बाई केलकर उपाख्य मौसी जी के द्वारा राष्ट्र सेविका समिति के नाम से आँखे खोली थी। संघ के समान ही विश्व का एक मात्र सबसे बड़ा महिला संगठन जो महिलाओं के अधिकारों के लिए नहीं अपितु मातृ शक्ति के कर्तव्यों के लिए कार्य कर रहा है । 87 वर्ष पूर्ण कर 88 वे वर्ष में समिति का कार्य संघ के समान विस्तार तो नहीं पाया है किंतु विचार अवश्य संपूर्ण भारत और भारत की सीमाओं से बाहर संघ के समान ही पहुँचा है l राष्ट्र सेविका समिति प्रचार प्रसार से दूर तेजस्वी राष्ट्र का पुनर्निर्माण और भारत की महिलाओं में नेतृत्व, कर्तव्य और मातृत्व के आदर्शो की स्थापना हेतु कार्य कर रही है ।
समान्यतः अभी भी समाज में समिति को संघ का एक अनुषांगिक संगठन समझा जाता है, किंतु वास्तविकता में राष्ट्र सेविका समिति संघ के समानांतर चलने वाला एक स्वतंत्र संगठन है, जिसकी स्थापना के समय ही डा. हेडगेवार जी ने व लक्ष्मी बाई केलकर जी को आग्रह किया था कि आप संघ प्रेरणा से हिंदुत्व के विचार लेकर समिति का कार्य स्वतंत्र आरंभ कीजिये । संभवतः उस समय समाज की तत्कालीन परिस्थितियों को देखकर ऐसा निर्णय लिया गया हो । राष्ट्र सेविका समिति हिंदुत्व व राष्ट्रीयता के इन्हीं भावों को लेकर आज भी समाज के उन विषयों पर कार्य कर रही है जो राष्ट्र को आंतरिक रूप से सक्षम, स्वाभिमानी और स्वाबलंबी बनाते हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शाखाओं के माध्यम से व्यक्ति निर्माण का कार्य करता ही है, साथ ही कहा जाता है संघ कुछ करता नहीं और स्वयंसेवक कुछ छोड़ता नहीं अतः संघ अपने अपने सभी अनुषांगिक संगठनों के द्वारा भारत के प्रत्येक भाग को स्पर्श कर बाहरी व आंतरिक स्वरूप को सुदृण कर रहा है फिर चाहे शिक्षा के क्षेत्र में विद्या भारती हो या अखिल भारतीय विधार्थी परिषद, सेवा के क्षेत्र में सेवा भारती, मजदूरों के लिए मजदूर संघ, किसानों के लिए किसान संघ आदि । इसके विपरीत राष्ट्र सेविका समिति समाज में सेवा प्रकल्पों के द्वारा भारतीय महिलाओं में जागरण करती है । अपने एक हजार से अधिक प्रकल्पों की सहायता से समिति महिलाओं को शिक्षा, सुरक्षा और स्वाबलम्वन से जोड़ती है । पुर्वोत्तर के राज्यों की बालिकाओं के लिए छात्रावास, छतीसगढ़ में कुष्ठ पीड़ितों के बच्चों के लिए शिक्षा और स्वास्थ के कार्य, गुजरात में महिलाओं के लिए सेवा प्रकल्प ऐसे अन्यान्य कार्य हैं जो प्रचार रहित हो निर्विकार रूप से समिति की प्रचारिकाये और पूर्ण कालिक कर रही हैं ।
समिति का स्वरूप पूर्ण रुपेण संघ के समान है, जिसमे सरसंघचालक जी के जैसे ही समिति की प्रधान संचालिका हैं, वर्तमान में व्ही शांता कुमारी जी जिन्हें शांताक्का कह कर पुकारा जाता है, वे इस दायित्व पर हैं । सर कार्यवाहिका के दायित्व पर सीता अन्नदानम् जी हैं । संघ के समान ही अखिल भारतीय कार्यकारिणी से लेकर शाखा स्तर के दायित्व होते हैं l समिति में भी प्रचारिकाये हैं जो अपना परिवार छोड़ कर संपूर्ण जीवन राष्ट्र कार्य में लगा रहीं हैं । संघ से इतर इनकी संख्या भले ही कम है किंतु कार्य प्रचारकों के समान ही शाखा विस्तार से लेकर प्रवास, वर्ग, बैठकों के क्रम वैसे ही हैं । समिति भी अपनी शाखाओं पर जोर देती है जो दैनिक, साप्ताहिक होती हैं , किंतु महिलाओं के मूल कार्य अपने परिवार की चिंता के साथ समिति कार्य हो यही स्वीकार किया जाता है। परिवार और कुटुंब प्रबोधन इनका आधार महिला ही है अतः समिति उससे विमुख होकर अपने कार्य को प्राथमिकता नहीं देती । समिति में आज गृहिणी, प्राध्यापक, चिकित्सक, व्यवसायी से लेकर छात्र वर्ग तक सभी प्रकार की मातृ शक्ति कार्य करती है ।
समिति में संघ के समान ही परिचय वर्ग, प्रारंभिक वर्ग, प्रवीण वर्ग और प्रबोध वर्गों की योजना रहती है जो प्रत्येक वर्ष जिला, विभाग, प्रांत से लेकर केंद्रीय स्तर तक संपन्न होते हैं और प्रति वर्ष हजारों सेविकाएं प्रशिक्षित होती हैं । शारीरिक, बौद्धिक, घोष सबके पाठ्यक्रम होते हैं l पथ संचलन से लेकर प्रकट समारोह तक की गतिविधियाँ चलती रहती हैं । समिति भी संघ के समान राजनैतिक कार्यों से दूर रहती है, पर कुछ सेविकाएं इस और भी दायित्व संभाल रही हैं या कर चुकी हैं । संघ के शताब्दी वर्ष को लेकर समिति ने भी 1000 विस्तरिकाओं को समाज जागरण हेतु निकाला है । जीजा माता, अहिल्या बाई और लक्ष्मी बाई को अपना आदर्श मानती समिति की सेविकाएं सतत रूप से मां भारती की सेवा भारत के हर कोने से लेकर विश्व के अनेक देशों में मौन साधक के रूप में कर रही हैं ।
जब जब विषय निकलता है कि संघ में महिलाओं की भूमिका अथवा संघ का महिलाओं को लेकर द्रष्टिकोण तो सामान्य भाषा में ऐसे समझा जा सकता है कि संघ और समिति माँ भारती को परम वैभव पर ले जाने वाले विचार के दो भाई बहन हैं, जिनका जन्म एक समान उद्देश्य को लेकर एक ही तिथि को हुआ है जो भारतीय परंपराओं के अनुरूप एक दूसरे से जुड़े हुए भी है और प्रथक भी हैं । संघ राष्ट्र के ढांचे को सूघढ, सुरक्षित और सुसंपन्न बनाने के लिए असंख्य कार्यकर्ताओं के साथ साधना कर रहा है तो समिति की बहनें भारत के आंतरिक स्वरूप को सुघढ और सुसंस्कृत बनाने में सलंगन् हैं । आवश्यक्ता आने पर दोनों भाई बहन राष्ट्र हित में साथ भी खड़े होते हैं, साथ देते भी हैं और चलते भी हैं किंतु दोनों ही एक दूसरे की स्वतंत्रता का मान सम्मान भी रखते हैं ।
यही है आज विजया दशमी को जन्में दो आर एस एस यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और राष्ट्र सेविका समिति की कार्य शैली उनका परिचय जो मौन साधक बन कर माँ भारती की साधना में अनवरत जुटे हुए हैं ।