ध्‍वस्‍त होता इस्‍लामिक अजेंडा और ओवैसी की स्वीकारोक्ति !

यदि संघ नहीं होता तो इतनी जागृति कभी हिन्‍दू समाज में नहीं आती और ना ही राममंदिर कभी हकीकत में रूप ले पाता!

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    09-Oct-2024
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auveshi and sangh
 
 
 
डॉ. मयंक चतुर्वेदी
 
 
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन' (एआईएमआईएम) प्रमुख और हैदराबाद से लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत और प्रधानमंत्री की जिस तरह से आलोचना की है और उन्‍हें भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा करार दिया है, उससे साफ दिखने लगा है कि देश से इस्‍लामिक अजेंडा अब ध्‍वस्‍त होने लगा है और इसकी अकुलाहट अपने आप को इस्‍लामिक पैरोकार माननेवालों में इतनी अधिक हो रही है कि वे समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर वे क्‍या करें? क्‍या ओवैसी अकेले हैं, जो इस तरह की बातें बोलते दिखे, इसके पहले के और औवेसी के दिए इस बयान के बाद तत्‍काल के आप कई वीडियो देख सकते हैं जो विभिन्‍न मुस्‍लिम नेताओं के हैं और सोशल मीडिया पर भरे पड़े हैं, उनमें कुछ मुसलमानी जलसों, तकरीर यहां तक कि इमाम बाड़ों और मस्‍जिदों तक के हैं, जिनमें साफ सुनाई दे रहा है कि कैसे बहु मुस्‍लिम नेता राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति जहर उगल रहे हैं। अब वही काम संविधानिक पद एवं गरिमा की शपथ लेने के बाद ओवैसी करते दिखे हैं।
 
 
 
वस्‍तुत: ओवैसी ने तेलंगाना के निजामाबाद में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा है कि देश में न तो हिंदुओं और न ही मुसलमानों को किसी तरह का खतरा है। ‘‘मुसलमानों, हिंदुओं, दलितों, आदिवासियों, सिखों, ईसाइयों को नरेन्द्र मोदी और मोहन भागवत से खतरा है।’’ भाईजान ओवैसी ये बात क्‍यों कह रहे हैं ? क्‍योंकि रा. स्‍व. संघ हिन्‍दू समाज को संगठित करने और भारत को विश्‍व का शक्‍ति‍सम्‍पन्‍न राष्‍ट्र बनाने की दिशा में पिछले 99 सालों से काम कर रहा है और इसी का परिणाम है कि हिन्‍दू समाज समेत भारत के प्रत्‍येक समाज में जनजागृति आ रही है। ओवैसी और इनसे जुड़े नेता हिन्‍दुओं को जाति के नाम पर लड़वाना चाहते हैं और उन्‍हें आपस में बांटकर पूरी तरह कमजोर ही देखना चाहते हैं ताकि वे अपने सेट अजण्‍डा को पूरा कर पाएं। लेकिन यह संघ और मोदी के रहते संभव नहीं हो पा रहा है।
 
 
 
ये रा. स्‍व. संघ के ही प्रयास है जो एक के बाद एक अनेक इस्‍लामिक जूठ और फरेब अब तक पकड़े जा चुके हैं। वक्‍फ बोर्ड की मनमानी पर चाबुक चला है और राममंदिर का भव्‍य निर्माण सम्‍पन्‍न हो चुका है। अब बारी अयोध्‍या के बाद काशी और मथुरा की है। जिसके कि अधिकांश साक्ष्‍य अब तक न्‍यायालय में हिन्‍दू पक्ष में ही गए हैं। हिन्‍दू मंदिरों को सरकारी प्रशासन से मुक्‍त करने की मांग बलवती है। समान नागरिक संहिता की मांग उठी है और विदेशी घुसपैठ पर लगातार अंकुश लगाया जा रहा है। ऐसे चारों दिशाओं में होनेवाले अनेक काम हैं जो रास्‍वसंघ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के होने से संभव हो सके हैं ।
 
 
 
वास्‍तव में तकलीफ ही यही है कि यदि आरएसएस नहीं होता तो इतनी जागृति कभी हिन्‍दू समाज में नहीं आती और ना ही राममंदिर कभी हकीकत रूप ले पाता! इस्‍लामिक आक्रांताओं और तत्‍कालीन मुस्‍लिम बादशाहों ने भारत में 6000 से अधिक हिन्‍दू आस्‍था के बड़े केंद्रों को नष्‍ट किया, जिसके कि सभी साक्ष्‍य आज भी मौजूद हैं। वहीं, जैन, बौद्ध, सिख समेत हिन्‍दुओं के मध्‍यम व छोटे श्रद्धा के केंद्रों, मंदिरों को इस संख्‍या में मिला लिया जाएगा तो यह संपूर्ण संख्‍या 10 हजार से भी अधिक है। फिर भी सनातन धर्म हिन्‍दू एवं उससे निकले अन्‍य धर्म जैन, सिख और बौद्ध इस्‍लामवादियों से नहीं मांग रहे हैं कि वे सभी हमारे आस्‍था केंद्रों को वापिस करें। इस संदर्भ में जो कानून पूर्व कांग्रेस सरकार ने मुस्‍लिम तुष्टिकरण करते हुए 'प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट' बना दिया, उसी का पालन किया जा रहा है और अपने आराध्‍यों से जुड़े सिर्फ दो स्‍थल काशी एवं मथुरा जिस पर यह कानून लागू नहीं, क्‍यों कि हिन्‍दू संघर्ष इन दोनों स्‍थानों पर कानून बनने से पूर्व से अयोध्‍या राममंदिर की तरह चल रहा है की मांग की जा रही है, किंतु उस पर भी ये मुसलमान नेता हल्‍ला इस तरह मचा रहे हैं जैसे भारत में दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्‍या जोकि अंतरराष्‍ट्रीय मापदण्‍डों में अब अल्‍पसंख्‍यक नहीं रही, वह मुसलमानों का भयंकर उत्‍पीड़न यहां बहुसंख्‍यक हिन्‍दू कर रहे हैं।
 
 
 
कहने को असदुद्दीन ओवैसी का उक्‍त बयान हाल ही में राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक डॉ. मोहन भागवत के उस उद्बोधन के बाद आया है, जोकि उन्‍होंने हाल ही में उत्तरप्रदेश प्रवास के दौरान हिंदू समाज को आंतरिक मतभेदों को मिटाकर अपनी और राष्ट्र की सुरक्षा के लिए एकजुट होने के लिए दिया था। आखिर उन्‍होंने ऐसा क्‍या कहा है जोकि ओवैसी जैसे तमाम मुस्‍लिम नेता आज परेशान हैं? डॉ. मोहन भागवत ने यही तो कहा है कि ‘‘स्वयंसेवक का बस्ती में सर्वत्र संपर्क हो। समाज को संबल देकर बस्ती के अभावों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। समाज में सामाजिक समरसता, सामाजिक न्याय, सामाजिक आरोग्य, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलंबन के लिए आग्रह रहना चाहिए। स्वयंसेवक गतिविधि कार्य में भी सक्रिय रहे। समाज की छोटी इकाई परिवार में समरसता-सद्भावना, पर्यावरण, कुटुम्ब प्रबोधन, स्वदेशी एवं नागरिक बोध को सहज बना सकते हैं। जीवन में छोटी-छोटी बातों को आचरण में लाने से समाज एवं राष्ट्र की उन्नति में बड़ा योगदान दिया जा सकता है।’’
 
 
 
उन्होंने यही तो कहा है, ‘‘हिन्दु समाज को अपनी सुरक्षा के लिए भाषा, जाति, प्रांत के भेद व विवाद मिटाकर संगठित होना होगा। समाज ऐसा हो जहां संगठन, सद्भावना एवं आत्मीयता का व्यवहार हो। समाज में आचरण का अनुशासन, राज्य के प्रति कर्तव्य एवं ध्येय निष्ठ होने का गुण आवश्यक है। मैं व मेरा परिवार मात्र से समाज नहीं बनता, बल्कि हमें समाज की सर्वांगीण चिंता से अपने जीवन में भगवान को प्राप्त करना है।’’ उन्होंने यही कहा है, ‘‘संघ कार्य यंत्रवत नहीं, बल्कि विचार आधारित है। संघ कार्य की तुलना योग्य कार्य विश्व में नहीं है। उपमा के तौर पर सागर, सागर जैसा है, गगन, गगन जैसा है, वैसा ही संघ भी संघ जैसा ही है। संघ की किसी से तुलना नहीं हो सकती। संघ से संस्कार गटनायक में जाते हैं, गटनायक से स्वयंसेवक और स्वयंसेवक से परिवार तक जाते हैं। परिवार से मिलकर समाज बनता है। संघ में व्यक्ति निर्माण की यही पद्धति है।’’
 
 
 
डॉ मोहन भागवत ने यही तो कहा है, ‘‘विश्व में भारत की प्रतिष्ठा अपने देश के सबल होने से है। सबल राष्ट्र के प्रवासियों की सुरक्षा भी तब ही जब उनका राष्ट्र सबल है। वरना निर्बल राष्ट्र के प्रवासियों को देश छोड़ने के आदेश दे दिये जाते हैं। भारत का बड़ा होना प्रत्येक नागरिक के लिए भी उतना ही आवश्यक है।’’ वे यही तो स्‍वयंसेवकों से कह रहे हैं, ‘‘भारत हिन्दू राष्ट्र है। प्राचीन समय से हम यहा रहते आये है, भले हिन्दू नाम बाद में आया। यहां रहने वाले भारत के सभी पंथो के लिए हिन्दु प्रयोग हुआ। हिन्दू जो सबको अपना मानते है और सबको स्वीकार करते है। हिन्दु कहता है हम भी सही और तुम भी अपनी जगह सही। आपस में निरंतर संवाद करते हुए सद्भाव से रहे।’’
 
 
 
अब आप सुधी पाठक विचार करें, इसमें ऐसा क्‍या कहा गया है, जोकि किसी मुस्‍लिम नेता को बुरा लगना चाहिए? क्‍या भारत को शक्‍तिशाली रूप में देखना अनुचित है? क्‍या स्‍वयंसेवक को समाज के हर वर्ग की चिंता नहीं करनी चाहिए? क्‍या इस समाज के वर्ग में सिर्फ हिन्‍दू ही आते हैं, अन्‍य कोई नहीं? क्‍या सभी की समग्रता से चिंता नहीं करनी चाहिए ? वस्‍तुत: होना तो यह चाहिए था कि सभी मुस्‍लिम नेता खुश होते कि संघ आज समग्रता से ‘सर्वजनहिताय’ के लिए स्‍वयंसेवकों का आह्वान कर रहा है जिसमें कि भारत के प्रत्‍येक नागरिक का हित है। सभी का विकास और कल्‍याण है, लेकिन आश्‍चर्य है, यहां इसका विरोध हो रहा है!
 
 
 
अंत में कहना यही है कि भारत में मुसलमान जितने सुखी है, उतने दुनिया के कई इस्‍लामिक देशों में भी नहीं हैं। यह स्‍वीकृति स्‍वयं समय-समय पर मुसलमान खुद से स्‍वीकार चुके हैं। ओवैसी, अकबरुद्दीन, मौलाना तौकीर रजा, एवं अन्‍य भड़काऊ नेताओं का काम सिर्फ भारत को कमजोर करना और देश में बहुसंख्‍यक समाज के विरोध में खड़े रहते हुए इस्‍लामीकरण के लिए काम करना है! भारत में जितनी आजादी इस्‍लाम को मिली है, वह इसीलिए ही है क्‍योंकि यहां हिन्‍दू बहुसंख्‍यक है, इन मुसलमानों ने भारत से अलग हुए पाकिस्‍तान और बांग्‍लादेश में अल्‍पसंख्‍य हिन्‍दू एवं अन्‍य गैर मुस्‍लिम समाजों का कितना उत्‍पीड़न कर रखा है यह विश्‍व देख रहा है। अच्‍छा हो ओवैसी अपनी नफरत भरी जुबान पर लगाम लगाएं। वस्‍तुत: वर्तमान की हकीकत यही है कि पिछले 99 सालों की संघ तपस्‍या के परिणाम स्‍वरूप आज इस्‍लामिक अजेंडा ध्‍वस्‍त हो रहा है, इसी की तकलीफ बार-बार ओवैसी जैसे इस्‍लामिक नेताओं के मुंह से बाहर निकल रही है!