रमेश शर्मा.
भारतीय इतिहास के पन्नों पर 26 नवम्बर 2008 एक काला अध्याय है इस दिन देश की औद्योगिक राजधानी समझी जाने वाली मुम्बई पर एक भीषण और सुनियोजित आतंकी हमला हुआ था। इस हमले में प्रत्यक्ष हमलावर तो केवल दस थे पर पूरा देश तीन दिनों तक आक्रांत रहा। इस हमले को सोलह वर्ष बीत गये, मुम्बई भी पहले की भाँति भागने लगी लेकिन कुछ रहस्य हैं जिन पर आज भी परदा पड़ा हुआ है। हमले का एक सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि एएसआई तुकाराम आँवले ने गोलियों से छलनी होकर भी आतंकवादी कसाब को जिंदा पकड़ लिया था। उनके प्राणों ने भले शरीर को छोड़ दिया पर तुकाराम ने कसाब को नहीं छोड़ा था। कसाब की पकड़ से ही भारत यह प्रमाणित कर पाया कि इस हमले के पीछे पाकिस्तान का हाथ है। सभी हमलावर हाथ में कलावा बाँधकर और भगवा दुपट्टा गले में डालकर आये थे।
आतंकवादी हमलों से तो कोई देश नहीं बचा, आधी से ज्यादा दुनियाँ आक्रांत है। इन दिनों भी हम हमास के आतंकी हमले से इस्राइल को जूझता हुआ देख रहे हैं। अमेरिका, इंग्लैंड और फ्राँस जैसे देशों ने भी आतंकवादी गतिविधियों के समाचार आते हैं और इन सबके पीछे कौन सी मानसिकता काम कर रही है, यह भी दुनिया से छिपा नहीं है। यह एक ऐसी मानसिकता है जो पूरी दुनियाँ को केवल अपने रंग में रंगना चाहती है, अपनी शैली में जीवन जीने के लिये विवश कर रही है। मुम्बई का यह हमला भी इस मानसिकता की उपज था, जो आधुनिकतम तकनीक और सटीक व्यूह रचना के साथ हुआ था। कोई कल्पना कर सकता है कि केवल दस आदमी सवा सौ करोड़ देशवासियों की दिनचर्या जाम कर दें और तीन दिनों तक पूरा समाज और सरकार दोनों हलाकान रहें ?
ये दस हमलावर एक विशेष आधुनिकतम नौका द्वारा समुद्री मार्ग से मुम्बई पोर्ट आये थे। वे रात्रि सवा आठ बजे कुलावा तट पर पहुँचे थे। सभी के हाथों में कलावा बंधा था वहीँ कुछ के गले में भगवा दुपट्टा भी दिख रहा था और सभी के पास बैग थे। ये जैसे ही पोर्ट पर उतरे मछुआरों ने देखा और मछुआरे इन्हें देखकर चौंके। उनके चौंकने का कारण था क्योंकि उन्हें ये लोग सामान्य न लगे थे। चूँकि इनकी कद काठी और न वेशभूषा थोड़ी भिन्न थी। सामान्यतः भगवाधारियों की टोली ऐसी नाव से कभी नहीं आती और नाव भी विशिष्ठ थी, इसलिये मछुआरों को वे कुछ अलग लगे। मछुआरों ने इसकी सूचना वहां तैनात पुलिस पाइंट को भी दे दी थी, किंतु पुलिस को मामला गंभीर न लगा और सभी आतंकवादी सरलता के साथ पोर्ट से बाहर आ गये।
वे वहां से दो टोलियों में निकले और बाद में दो दो सदस्यों के रूप में पाँच टोलियों में बँटे। इन्हें पाँच टारगेट दिये गये थे और प्रत्येक टारगेट पर दो दो लोगों को पहुँचना था। ये टारगेट थे होटल ताज, छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनल, नारीमन हाउस, कामा हास्पीटल और लियोपोल्ड कैफे। कौन कहाँ कब पहुँचेगा यह पहले से निश्चित था। रात सवा नौ बजे तक सभी अपने निर्धारित स्थानों पर पहुँच गये। वे सभी किसी अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क से जुड़े थे। इस नेटवर्क से तस्वीरें जा रहीं थीं और संदेश मिल रहे थे। ये सभी लगभग पन्द्रह मिनट अपने अपने स्थान पर घूमे, वातावरण का जायजा लिया और ठीक साढ़े नौ बजे हमला आरंभ किया। इन्हें पाकिस्तान में बैठकर कोई जकी-उर-रहमान कमांड दे रहा था। जकी की कमांड के अनुसार ही साढ़े नौ बजे यह हमले आरंभ हुये। ये सभी आतंकवादी अपने दिमाग से नहीं अपितु मिल रही कमांड के आधार पर काम कर रहे थे, इसलिये सभी ने अपने टारगेट पर पहुँचकर पहले सूचना दी और कमांड का इंतजार किया।
कहाँ बम फोड़ना है, कहाँ गोली चलाना है, कितनी गोली चलाना है, यह भी कमांड दी जा रही थी। ये हमला कितनी आधुनिक तकनीक से युक्त था इसका अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान में बैठा जकी-उर-रहमान इन सभी को और आसपास के वातावरण को देख रहा था। वह देखकर बता रहा था कि किसे क्या करना है। वह इन्हें आगे बढ़ने, दाँये या बायें मुड़ने का मार्ग भी बता रहा था और आगे पुलिस प्वाइंट कहाँ, यह भी बताता था। यह विवरण कसाब के ब्यान में आया। यह जकीउर रहमान कसाब को निर्देशित कर रहा था। इन पाँचों टीम को कमांड देने वाले अलग अलग लोग थे। बाकी हमलावर मारे गये थे इसलिये वह रहस्य आज भी रहस्य ही बना हुआ है।
ये सभी अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी संगठन लश्करे तयैबा से जुड़े थे। सभी के पास एके-47 रायफल, पिस्टल, 80 ग्रेनेट और विस्फोटक, टाइमर्स और दो दो हजार गोलियाँ थीं। हमला 26 नवम्बर को आरंभ हुआ और 28 नवम्बर की रात तक चला। 29 नवम्बर को सरकार ने हमले से मुक्त होने की अधिकृत घोषणा की। तब जाकर पूरे देश ने राहत की सांस ली। इस हमले में कुल 166 लोगों की मौत हूई, जो घायल हुये और जिन्होंने बाद में प्राण त्यागे उन्हें मिलाकर आकड़ा दो सौ से ऊपर जाता हैं वहीँ घायलों की संख्या तीन सौ अधिक थी। आतंकवादियों से निबटने के लिए सुरक्षा बलों ने ऑपरेशन "ब्लैक टोर्नेडो" चलाया था। यह मुकाबला कोई साठ घंटे चला और अंतिम मुठभेड़ होटल ताज में हुई। होटल ताज को इन दो आतंकवादियों से मुक्त कराने में सुरक्षा बलों को काफी संघर्ष करना पड़ा। इसका एक कारण यह था कि सुरक्षा बलों को इनकी लोकेशन का पता देर से लग रहा था लेकिन आतंकवादियों को होटल की गतिविधियों का पता कमांड से चल रहा था। आतंकवादियों ने होटल के कैमरे और लिफ्ट सिस्टम को नष्ट कर दिया था, इसलिये सुरक्षा बलों को कठिनाई आ रही थी जबकि पाकिस्तान में बैठा कमांडर होटल की हर गतिविधि को देख रहा था उसी अनुसार इन्हें कमांड दे रहा था जिससे आतंकवादी सुरक्षाबलों का मूवमेन्ट जान जाते थे और अपनी लोकेशन बदल लेते थे। यही कारण था कि केवल दो आदमियों ने होटल ताज में जन और धन दोनों का कितना अधिक नुकसान किया यह विवरण अब हम सबके सामने है।
बलिदानी तुकाराम आँबले
होटल ताज के बाद सबसे अधिक आतंक शिवाजी टर्मिनल पर आये दोनों आतंकवादियों ने मचाया। शिवाजी टर्मिनल पर मरने वालों की संख्या 58 और घायलों की संख्या 104 थी और यहीं सड़क पर आठ पुलिस कर्मी भी मारे गये थे। एएसआई तुकाराम ने यहीं आतंकवादी कसाब को जिंदा पकड़ा था। यदि कसाब जिन्दा न पकड़ा जाता तो इस हमले की आँच पाकिस्तान पर कभी न आती और इसे भी "भगवा आतंकवाद" के नाम मढ़ दिया जाता जैसे मालेगाँव विस्फोट, मक्का मस्जिद, अजमेर ब्लास्ट और समझौता एक्सप्रेस के आतंकी हमलों में हुआ था। ये सभी पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी विस्फोट थे, लेकिन पता नहीं क्यों भारत में बैठे भारत के ही कुछ लोगों ने "भगवा आतंकवाद" का शोर मचा दिया।
एक उर्दू पत्रकार ने पहले लेख माला चलाई फिर उसका संकलन निकाला और इन लेखों में बाकायदा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की साजिश करार देने की कोशिश की गई यह शोर इतना हुआ कि कुछ गिरफ्तारियाँ करके बल पूर्वक स्वीकार कराने की भी खबरें आईं। इस हमले में भी पहले यही प्रयास हुआ था, लेकिन कसाब जिन्दा पकड़ा गया था और उसने पाकिस्तान में अपने घर का पता भी बता दिया। इसलिये इस बार वह वैचारिक षडयंत्र सफल हो पाया जो गोधरा कांड के बाद से किया जा रहा था। कसाब के अनुसार शिवाजी टर्मिनल पर आये उसके साथी आतंकवादी का नाम इस्माइल खान था। अन्य चार स्थानों पर गये आतंकवादियों के नाम क्या थे यह कसाब नहीं जानता था।
गिरफ्तारी के बाद कसाब ने इस आतंकवादी टीम को मिले प्रशिक्षण का भी विवरण दिया। कसाब के अनुसार ये सभी आतंकवादी लश्कर के फिदायीन दस्ते के सदस्य थे। कसाब के बयानों के अनुसार सभी को मुजफ्फराबाद के पहाड़ पर बने कैम्प में ट्रेनिंग दी गयी थी। इसमें तैरने, नौकायन, हथियार चलाने के साथ कमांडो ट्रेनिंग भी दी गयी थी। इन्हें शस्त्र संचालन, हमला करने और हमले से बचाव की ही नहीं धार्मिक और मनौवैज्ञानिक प्रशिक्षण भी दिया गया था और बाकायदा इसके लिये प्रतिदिन क्लास लगती थी। अपनी गिरफ्तारी के पहले क्षण से फाँसी होने तक कसाब को अपने किये पर कोई अफसोस न था। उसे इस बात का संतोष था कि वह अपने काम में कामयाब रहा बस इस बात का मलाल रहा कि वह जिन्दा पकड़ा गया।
अपनी योजना के अनुसार कसाब और इस्माइल ने शिवाजी टर्मिनल पर सबसे पहले वेटिंग लाउंज में बैठे लोगों पर बम फोड़ा। इससे भगदड़ मची तो भागते लोगों पर गोलियाँ चलाई वे लगभग पन्द्रह मिनिट तक यही सब करते रहे फिर सुरक्षित बाहर निकले और कार से डीबी मार्ग की और गये। सूचना मिलने पर पुलिस ने जगह जगह वेरीकेटिग कर दी। वेरीकेटिग के लगभग पचास मीटर पहले ही गाड़ी रुकी। गाड़ी इस्माइल चला रहा था और कसाब बगल में था। पुलिस को देखकर गाड़ी मुड़ने लगी, पुलिस ने रोकने की कोशिश की तो कसाब ने गोलियां चलाना शुरु करदी। पुलिस ने जबाबी गोलियाँ चलाई, गोली गाड़ी चला रहे इस्माइल को लगी, गाड़ी तिरछी होकर रुक गयी, कसाब ने उसे सरका कर ड्राइविंग संभालने की कोशिश करने लगा। मौके का लाभ एएसआई तुकाराम आंवले ने उठाया। उन्होने कार के पास दौड़ लगाई और कसाब को पकड़ने की कोशिश की। जैसे ही वे करीब पहुंचे कसाब ने स्टेनगन से गोलियाँ चलाना आरंभ कर दीं। तुकाराम ने बंदूक की नाल पकड़ ली। गोलियां उनके सीने और शरीर को बेधने लगी। गोलियों की बौछार के बीच उन्होंने उछलकर कसाब के ऊपर गिरने की कोशिश भी की साथ ही स्टेनगन पकड़े रहे, गोलियां चल रहीं थीं, उनके सीने को छलनी कर रहीं थीं पर उन्होंने पकड़ न छोड़ी। उनकी पीठ के पीछे अन्य पुलिस टीम थी इसका लाभ दो सिपाहियों को मिला । वे फुर्ती से निकले और कसाब को जिन्दा पकड़ लिया। बलिदानी तुकाराम को कुल 23 गोलियाँ लगीं थीं। बाद में उन्हें मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया।
अनुत्तरित प्रश्न
इस घटना को अब सोलह साल बीत गये हैं। कसाब को 21 नवम्बर 2012 यवरदा जेल में फाँसी दी गयी। लेकिन इस पूरे हमले में कुछ प्रश्न हैं जिनका उत्तर आज तक न मिला। हो सकता है जाँच के दौरान में कोर्ट के सामने कुछ तथ्य आये हों पर वे सार्वजनिक न हो सके। सबसे पहले तो यही कि इन सबका कलावा बाँध कर आना, दूसरा इनके पास फर्जी आईडी कार्ड होना सभी के पास फर्जी आईडी भारतीय पते की थी और हिन्दु नामों की। कसाब के पास जो फर्जी आई डी अजमेर के जितेन्द्र चौधरी नाम की थी। ये सभी फर्जी दस्तावेज पाकिस्तान में ही तैयार हुये थे लेकिन नाम पते सही था। यह माना गया कि अन्य आतंकवादियों के पास भी ऐसी फर्जी आई डी होगी परन्तु वह मिल न सकीं।
कसाब पहली बार भारत आया था। आखिर वह कनेक्शन क्या था जिससे सही नाम पते पर फर्जी आई डी पाकिस्तान में तैयार हुई। दूसरा कलावा और भगवा दुपट्टा। भारत में गोधरा कांड के बाद से एक योजनाबद्ध शब्द आया भगवाधारी आतंकवाद। ऐसे शब्द मालेगाँव विस्फोट, मक्का मस्जिद विस्फोट, समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट आदि के समय भी आये थे। उन सब घटनाओं में मौके पर कोई न पकड़ाया। भगवा आतंकवाद के शोर के बाद में कुछ लोगों को पकड़ा गया उनमें असीमानंद, भावानंद, साध्वी प्रज्ञा भारती प्रमुख थीं। इन सब को कितनी यातनाये देकर अपराध कबूल कराने और कूटरचित सुबूत जुटाने की कोशिश भी हुई इन सबका खुलासा इस जाँच में लगे एक अधिकारी ने अपनी सेवानिवृत्ति के बाद कर दिया है। तो क्या घटनाओं को भगवा रंग और कलावा संस्कृति से जोड़ने का लाभ पाकिस्तान में बैठे लश्कर के आतंकवादी संगठन ने उठाने की कोशिश की या जो लोग भगवा आतंकवाद का नारा लगा रहे थे उनके बीच कोई छद्म भेदी घुस गया था जो पूरे देश को भटका कर भगवा आतंकवाद का शोर मचाकर पाकिस्तान से ध्यान हटाने का षड्यंत्र कर रहा था?
इस प्रश्न का उत्तर आज तक न मिला। पर इतना तय है कि पूर्व में घटित आतंकवादी घटनाओं में उठे भगवा आतंकवाद के शोर ने असली अपराधियों को खुलकर खेलने का मौका दिया। 7 जनवरी 2009 को पाकिस्तान ने स्वीकार किया कि अजमल कसाब पाकिस्तान का रहने वाला है। अंतर्राष्ट्रीय दबाब के चलते पाकिस्तान ने जकीउर रहमान को भी गिरफ्तार किया लेकिन जमानत पर छोड़ दिया।
तीसरा और सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि पाकिस्तान से आने वाले क्या केवल दस आदमी थे ? क्या कोई ऐसी टीम पहले आ गई थी जिसने इन सबको अपने अपने टारगेट पर पहुँचाया। कसाब के साथ जो गाड़ी पकड़ी गयी, वह गाड़ी इन लोगों ने हाइजैक की थी। कसाब सहित सारी टीमें ठीक समय पर अपने अपने स्थान पर कैसे पहुँची, किसने सही मार्ग बताये, वह माध्यम क्या थे, जिससे ये सभी समय पर अपने अपने टार्गेट पर पहुँचे। कुछ अपुष्ट समाचार ऐसे भी आये थे कि यह कुल सत्रह लोगों की टीम थी। सात लोग तीन दिन पहले आ गये थे जिन्होनें गाइड किया, लेकिन इस समाचार की पुष्टि न हो सकी और न उनका कोई सुराग लग सका। इसका कारण यह था कि कसाब ने केवल अपने बारे में बताया। बाकी सबके वह नाम भी नहीं जानता था।उनके ट्रेनिंग कैंप में व्यक्तिगत बात करना, परिचय पूछना मना था, सबको कोड नाम से बुलाया जाता था और वही नाम एक दूसरे का जानते थे।
एक चौथा सबाल जो राजनैतिक आरोप प्रत्यारोप में खो गया। वह है हैमंत करकरे की शहादत का। हेमन्त करकरे को उस दिन कंट्रोल रूम पर सिचुएशन कोआर्डिनेट करनी थी फिर वे टीम लेकर मैदान में क्यों पहुंचे वह भी साधारण हथियारों के साथ। बहरहाल मुम्बई ने हमलों का सबसे अधिक गहरा दंश झेला है। 1993 के सीरियल ब्लास्ट के बाद 2008,के इस हमले तक कुल तेरह बड़ी घटनाएँ हुईँ जिनमें 257 मौतें और 700 से अधिक लोग घायल हुये। इस बड़ी घटना के बाद कुछ विराम सा लगा पर समाज और राजनेताओं को राजनैतिक हित और राष्ट्र हित में अंतर अवश्य रखना होगा। आक्रमण यदि राष्ट्र पर है तो राजनीति आड़े नहीं आना चाहिए। हो सकता है गोधरा कांड के बाद हमलों पर राजनीति न होती तो शायद यह घटना न घटती या पाकिस्तान को इतना मौका न मिलता।