रमेश शर्मा.
भारत में सनातन परम्परा के आयोजनो के साथ अब राष्ट्रीय पर्वों और तिरंगा यात्रा पर भी हमले होने लगे। इन हमलों में भी वे मुस्लिम कट्टरपंथी समूह सामने आये हैं जो सनातन परंपराओं पर हमले करते रहे हैं। इन कट्टरपंथी हमलावरों के बचाव के लिये भी एक पूरा "नेटवर्क" सक्रिय है जो राजनीति से लेकर अदालत तक सक्रिय रहता है। इसमें कुछ सामाजिक संगठन और जो चेहरे ऐसे भी हैं जिनकी आर्थिक सहायता के तार उन अंतरराष्ट्रीय शक्तियों तक जाते हैं जो भारत की प्रगति अवरुद्ध करना चाहते हैं। इसकी स्पष्ट झलक दिल्ली के दंगों में देखी गई थी और अब चंदन गुप्ता हत्याकांड में तो न्यायालय के सामने सात संगठनों के नाम भी सामने आये हैं।
भारत ने विकास की एक नई अंगड़ाई ली है। आर्थिक, सामाजिक, तकनीकि ही नहीं अंतरिक्ष अनुसंधान में भी नये आयाम स्थापित हुये हैं जिसका लोहा पूरे विश्व ने माना है। यह संपूर्ण भारतवासियों केलिये गर्व की बात है कि जिस इंग्लैंड ने कभी भारत पर शासन किया अब उसी इंग्लैड के अंतरिक्ष यानों के प्रक्षेपण का माध्यम भारतीय वैज्ञानिक संस्था इसरो बनी और तकनीकि लागत सीमित करने की युक्ति की प्रशंसा नासा ने की। परन्तु भारत की इस बढ़ती प्रतिष्ठा से भारत विरोधी कुछ अंतर्राष्ट्रीय शक्तियाँ बौखलाई और भारत की विकास गति अवरुद्ध करने के षड्यंत्र करने लगीं। इन दिनों ये षड्यंत्र दोनों प्रकार से हो रहे हैं, राजनैतिक अस्थिरता उत्पन्न करने के भी और सामाजिक जीवन अशांत करने के भी।
भारत के राजनैतिक वातावरण को अस्थिर बनाने के कुचक्र में सक्रिय जार्ज सोरोस ने कैसे भारत के कुछ मीडिया समूहों और राजनैतिक दलों में अपनी घुसपैठ बढ़ाई है, ये समाचार अब छिपा नहीं है। सड़क से संसद तक नाम सामने आ चुके हैं। भारत विरोधी अंतरराष्ट्रीय शक्तियाँ दूसरी ओर समाज जीवन को षड्यंत्र पूर्वक अशांत करने वाले अपराधियों के बचाव में लगीं हैं। इसकी पुष्टि उत्तर प्रदेश के कासगंज में तिरंगा यात्रा में बलिदान हुये चंदन गुप्ता हत्याकांड की सुनवाई के दौरान हुई। न्यायालय के सामने कुछ अंतर्राष्ट्रीय एनजीओ के ऐसे नाम सामने आये हैं जो मुस्लिम कट्टरपंथियों के माध्यम से भारत के सामाजिक जीवन में अशान्ति ही नहीं टकराव पैदा करने का षड्यंत्र कर रहे हैं।
तिरंगा यात्राओं पर हमले और बचाव के लिये आगे आये अंतर्राष्ट्रीय एनजीओ -
भारत में कुछ वर्ष पहले तक केवल सनातन परंपरा की यात्राओं पर हमले होते थे लेकिन अब राष्ट्रीय पर्व और तिरंगा यात्रा पर भी हमले होने लगे। तिरंगा यात्रा पर हुये हमले में चंदन कुमार गुप्ता के प्राणों का बलिदान हुआ। चंदन गुप्ता राष्ट्रीय जागरण के लिये निकाली जा रही तिरंगा यात्रा में सहभागी थे और राष्ट्र गौरव के प्रतीक तिरंगा लेकर सबसे आगे चल रहे थे, उत्तर प्रदेश के कासगंज की यह घटना 26 जनवरी 2018 की है। युवाओं में राष्ट्र जागरण के लिये विविध संगठन स्वतंत्रता की वर्षगाँठ 15 अगस्त और 26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर तिरंगा यात्राओं का आयोजन करते है और इसी के अनुरूप कासगंज में यह तिरंगा यात्रा निकाली जा रही थी। इस यात्रा में युवा चंदन कुमार गुप्ता तिरंगा लेकर आगे चल रहे थे और इसी बीच कट्टरपंथियों की भीड़ ने तिरंगा यात्रा पर हमला कर दिया जिसमें कई युवा घायल हुये और चंदन गुप्ता का बलिदान हुआ।
हमलावर केवल तिरंगा यात्रा पर हमला करने तक ही नहीं रुके और इसके बाद पूरा कासगंज हिंसा की चपेट में आ गया। इस हिंसा के आरोपियों को दंडित करने केलिये उत्तर प्रदेश सहित कई स्थानों में शांति मार्च निकाले गये और दोषियों को दंडित करने की मांग की गई। लगभग 6 वर्ष बाद एनआईए कोर्ट का निर्णय तीन जनवरी 2025 को आया जिसमें कुल 28 लोगों को दोषी पाकर अलग-अलग अवधियों के कारावास का दंड घोषित किया गया। इनमें आसिफ कुरैशी उर्फ हिटलर, असलम कुरैशी, असीम कुरैशी, शबाब, साकिब, मुनाजिर रफी, आमिर रफी, सलीम, वसीम, नसीम, बबलू, अकरम, तौफीक, मोहसिन, राहत, सलमान, आसिफ, आसिफ जिम वाला, निशु, वासिफ, इमरान, शमशाद, जफर, शाकिर, खालिद परवेज, फैजान, इमरान, शाकिर, जाहिद उर्फ जग्गा शामिल हैं। एनआईए न्यायालय ने इस प्रकरण में नसरुद्दीन और असीम कुरैशी को दोनों को सबूतों के अभाव बरी कर दिया, जबकि एक अन्य आरोपी अजीजुद्दीन की मृत्यु हो गई थी।
आरोपियों को बचाने के लिये कैसी योजना से काम किया इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है की एनआईए न्यायालय को निर्णय देने में 6 वर्ष लगे। तकनीकि बिंदु उठाकर उच्च न्यायालय में भी दस्तक दी गई। इन आरोपियों को बचाने के लिये केवल भारत के कट्टरपंथी ही सक्रिय नहीं, विदेशों से भी आर्थिक सहायता ली गई। ऐसे 6 एनजीओ के नाम तो न्यायालय के सामने आये, इनमें से कुछ न्यूयॉर्क और लंदन से जुड़े हैं और इन एनजीओ का संपर्क भारत के कुछ एनजीओ से है। ये एनजीओ स्थानीय लोगों से मिलकर कासगंज के दंगाइयों और राष्ट्र भक्त चंदन गुप्ता के हत्यारों को बचाने के लिये पूरी शक्ति से जुटे रहे। न्यायालय ने इन एनजीओ की फंडिंग के स्रोत और इसके उद्देश्यों को लेकर कुछ प्रश्न भी उठाए और सरकार से जांच केलिये अपेक्षा की है।
एनआईए कोर्ट के सामने जिन एनजीओ के नाम सामने आये उनमें न्यूयॉर्क से संचालित "एलाइन्स फाॅर जस्टिस एण्ड एकाउंटेबिलिटी"(Alliance for justice and accountability), वॉशिंगटन से संचालित "इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउन्सिल" (Indian American Muslim council) और लंदन से संचालित "साउथ एशिया सोलिडर्टी ग्रुप" (South Asia solidarity Group) भी शामिल हैं। इनके अतिरिक्त भारत से संचालित होने वाले तीन अन्य एनजीओ के नाम भी सामने आये इनमें मुंबई से संचालित "सिटीजन फाॅर जस्टिस एण्ड पीस" (Citizens for justice and Peace), नई दिल्ली से संचालित "पीपुल्स यूनियन फाॅर सिबिल लिबर्टीज" (People Union for civil liberties) और लखनऊ से संचालित "रिहाई मंच" (Rihai manch) शामिल है। इन सभी एनजीओ का उल्लेख न्यायालय ने अपने निर्णय में भी किया है और कहा है कि "इन एजेंसियों की फंडिंग कहां से हो रही है और इनका सामूहिक उद्देश्य क्या है। न्यायालय के सामने यह बात भी आई कि इन संस्थाओं से जुड़े लोगों ने केवल आरोपियों को बचाने का ही प्रयास नहीं किया अपितु ऐसे अनावश्यक बिंदु उठाये जिससे प्रकरण का निबटारा करने में समय लगा। न्यायालय ने अपने निर्णय की प्रति भारत सरकार के गृह मंत्रालय और बार काउंसिल ऑफ इंडिया को भी भेजी है ताकि न्यायायिक प्रक्रिया में अनावश्यक विलंब रुके।
भारत के साँस्कृतिक अथवा राष्ट्रीय आयोजनों पर हमला और हमलावरों को बचाने केलिये योजना पूर्वक काम करने का यह कासगंज का प्रकरण अकेला या पहला नहीं है। इससे पहले कट्टरपंथियों और आतंकवादियों को बचाने के प्रयास हुये हैं। आतंकवादी अफजल को बचाने केलिये उच्चतम न्यायालय से लेकर राष्ट्रपति भवन तक जो दौड़ लगाई गई, बड़े बड़े वकील खड़े हुये, आधी रात को न्यायालय का द्वार खटखटाया गया, यह सब पूरे देश ने देखा है। यही सब कासगंज की घटना में हुआ और कासगंज की भाँति पिछले समय में देश के अनेक स्थानों पर तिरंगा यात्रा रोकने का प्रयास हुआ, हमले हुये और पथराव हुआ। अनेक घटनाएँ तो स्थानीय प्रशासन और वयोवृद्ध लोगों के समझाने से पुलिस के रिकार्ड में नहीं आईं। लेकिन नौ स्थानों पर ऐसी बड़ी घटनाएँ हुईं जिनमें दंगे हुये, तोड़फोड़ हुई, पुलिस और प्रशासन को हस्तक्षेप करना पड़ा।
इन सभी घटनाओं के पीछे मुस्लिम कटरपंथी समूहों का ही हाथ था। देश के अन्य भागों में जो प्रमुख घटनाएँ घटीं इनमें 15 अगस्त 2024 को गुजरात के सुरेंद्र नगर क्षेत्र अंतर्गत सांगानी ग्राम में, 14 अगस्त 2024 को तमिलनाड के कोयंबटूर में, 15 एवं 18 अगस्त 2023 को गुजरात के आनंद क्षेत्र अंतर्गत समरखा में, 17 अगस्त 2023 को हरियाणा के करनाल में,10 अगस्त 2022 को उत्तर प्रदेश के हरदोई में, इस घटना में पुलिस पर भी पथराव हुआ। 15 अगस्त 2022 को उत्तर प्रदेश के बदायूँ में एक मदरसे के इमाम रिजवान पर कट्टरपंथियों ने इसलिये हमला बोला कि इमाम ने स्वतंत्रता दिवस पर मदरसे में तिरंगा फहराने का प्रयास किया था। कट्टरपंथियों ने न केवल तिरंगा उतार कर अपमान किया अपितु इमाम रिजवान की पिटाई भी की। 25 जनवरी 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय प्रशासन ने उन दो छात्रों के विरुद्ध कार्रवाई की जो विश्वविद्यालय परिसर में तिरंगा लेकर घूम रहे थे। इन सभी घटनाओं के आरोपियों के बचाव में जिस शीघ्रता से कुछ संगठन और व्यक्ति सामने आये उससे इस संभावना को नकारा नहीं जा कि आरोपियों ने बचाव की रणननीति बनाकर ही उपद्रव किया था।
सनातन परंपरा की शोभा यात्राओं पर हमले और आरोपियों के बचाव की रणनीति -
मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा राष्ट्रीय यात्राओं पर हमले की घटनाएँ भले कम हों लेकिन सनातन परंपरा के मान बिन्दुओ और शोभा यात्राओं पर लगातार हमले हुये हैं। इन हमलों में तब से और तेजी देखी जा रही है जब से प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी ने भारत का विश्व का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र बनाने के लिये वर्ष 2047 का लक्ष्य निर्धारित किया है। भारत में कुछ कट्टरपंथी समूह अशांति और अस्थिरता पैदा करके भारत का रूपांतरण करने का षड्यंत्र सदैव करते रहे हैं। सनातनी परंपरा के त्यौहारों पर पथराव, पाकिस्तान के झंडे लहराना, आतंकवादियों के समर्थन में जुलूस निकलना, उनकी वर्षी मनाना,भारत के टुकड़े होने के नारे लगाना इसके उदाहरण हैं। इन कट्टरपंथियों को अब भारत की प्रगति अवरुद्ध करने का कुचक्र करने वाली अंतरराष्ट्रीय शक्तियों का साथ भी मिल गया है।
इससे इनका प्रभाव राजनीति में भी बढ़ा है और न्यायालयीन प्रक्रिया में भी। यदि बहुत पुरानी बात छोड़ दें और केवल तीन वर्ष के आँकड़े देखें तो सनातन परंपराओं के आयोजन कांवड़ यात्रा गणेशोत्सव, दुर्गा उत्सव और दशहरे पर पथराव की सौ से अधिक घटनाएँ घटीं हैं। ये किसी क्षेत्र विशेष की घटनाएँ नहीं हैं अपितु पूरे देश में घटीं हैं। उत्तर प्रदेश से लेकर बंगाल तक और दिल्ली से लेकर केरल तक भारत के अधिकांश प्रदेशों में घटीं हैं और दर्जन भर से अधिक बलिदान हुये। लूट,हिंसा और क्रूरता की जो मानसिकता लेकर मध्य एशिया के हमलावर भारत आये थे वह मानसिकता सल्तनतकाल में भी बनी रही। सनातन धार्मिक स्थलों के विध्वंस और परंपराओं के दमन से भारत का इतिहास भरा है। स्वतंत्रता एवं भारत विभाजन के बाद भी यह क्रम कभी रुका नहीं। देश का कोई प्राँत, कोई वर्ष ऐसा नहीं बीता जब मुस्लिम कट्टरपंथियों ने कहीं मंदिर को खंडित न किया हो अथवा शोभा यात्रा पर पथराव न किया हो।
सल्तनत काल में सनातनियों की हत्या करने में जिस क्रूरता का विवरण मिलता है वही क्रूरता कट्टरपंथियों के मन मस्तिष्क में आज भी देखी जा रही है। इसका उदाहरण कासगंज के चंदन गुप्ता की हत्या तो है ही इसके साथ जैसी बहराइच में रामगोपाल मिश्रा और दिल्ली दंगों में अंकित शर्मा की हत्या के बाद शवों पर चोटों के जैसे निशान देखे गये, यह विवरण रोंगटे खड़े कर देने वाले है। इतने युग बीत जाने के बाद भी न तो क्रूरता में कोई अंतर आया और न गिरोहबंद हिंसा में। और जिस प्रकार एनजीओ और प्रभावी चेहरों की सक्रियता कासगंज के बलिदानी चंदन गुप्ता प्रकरण में देखी गई वैसे ही सक्रियता बहराइच के राम गोपाल मिश्रा की हत्या के आरोपियों को बचाने में देखी गई।
बहराइच की घटना अक्टूबर 2024 की है। दुर्गा विसर्जन शोभा यात्रा निकल रही थी, महराजगंज कस्बे में इस यात्रा को रोकने का प्रयास हुआ। घटना के बाद जाँच में जो परिस्थिति सामने आई उससे संकेत मिलता है कि दंगे की तैयारी पहले से कर ली गई थी। जैसे ही विसर्जन यात्रा महराजगंज पहुँची, उसे अब्दुल हमीद, सबलू, सरफराज व फहीम आदि ने रोकने का प्रयास किया। लेकिन यात्रा नहीं रुकी, यात्रा आगे बढ़ने लगी । सबसे आगे भगवा ध्वज लाये युवा राम गोपाल मिश्रा चल रहे थे। आसपास की छतों से पथराव होने लगा, पलक झपकते ही सैकड़ों कट्टरपंथी मुसलमानों की भी॓ड़ एकत्र हो गई। युवक राम गोपाल को पकड़कर एक मकान में ले जाया गया वहाँ क्रूरता पूर्वक हत्या की गई।
मीडिया में आये विवरण के अनुसार शरीर का ऐसा कोई अंग नहीं जहाँ चोट न लगी हो। इसके साथ पूरे क्षेत्र में मारपीट और तोड़ फोड़ आरंभ हुई जो अगले दिन तक जारी रही। उपद्रव पूरी तैयारी से था, छतों पर पत्थर पहले से एकत्र थे। बहराइच की हिंसा भी कितनी योजना पूर्वक थी इसकी झलक इस दंगे के बाद की घटनाओं में दिख रही है। आरोपियों को बचाने के लिये जिला न्यायालय से लेकर उच्च न्यायालय तक सक्रियता देखी गई। शनिवार के अवकाश के दिन भी अदालत को दस्तक दी गई। कुछ ऐसे एनजीओ भी सक्रिय हुये जिन्होने यह प्रचारित करने का प्रयास किया कि उपद्रव डीजे को लेकर हुआ और राम गोपाल स्वयं मकान में घुसा था। भला कोई विचार कर सकता है कि शोभा यात्रा में भगवा ध्वज लेकर आगे चल रहा युवक अपनी यात्रा छोड़कर किसी मकान में घुसेगा? इस प्रकरण में भी अब 31 गिरफ्तारियाँ हो चुकीं हैं। लेकिन उनके बचाव के लिये सक्रियता से जो चेहरे सामने आये हैं इनके तार दिल्ली के दंगों और भारत माता के टुकड़े होने का नारा लगाने वालों जाते दिख रहे हैं।
दिल्ली दंगे के बाद भी बचाव की वही रणनीति -
दंगे के आरोपियों को बचाने की जो रणनीति और कुछ अंतरराष्ट्रीय एनजीओ की जैसी सक्रियता कासगंज, संभल और बहराइच की घटनाओं में देखी गई वैसी ही योजना और सक्रियता दिल्ली के दंगों में देखी गई थी। दिल्ली में दंगा 24 फरवरी 2020 को जाफराबाद और मौजपुर में हुआ था। इसमें अंकित शर्मा का शव दो दिन बाद 26 फरवरी को चांद बाग़ के नाले में मिला था। अंकित के शरीर पर चोटों के 51 निशान थे, यह प्रकरण 11 मार्च, 2020 को लोकसभा में भी उठा था। इस दंगों में ड्यूटी के हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल की भी हत्या हुई थी, उनके शरीर पर भी चोटों के अनेक निशान थे। दंगाइयों की यह भीड़ नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के विरोध के बहाने एकत्र हुई थी और प्रदर्शन के नाम पर एकत्र इस भीड़ ने भयंकर पथराव किया और घरों, वाहनों और दुकानों में तोड़फोड़ की। बाद की जांच में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल और क्राइम ब्रांच ने दिल्ली दंगे को गहरी साज़िश माना। जेएनयू के पूर्व छात्र उमर ख़ालिद को मास्टरमाइंड माना जा रहा है। ये पूर्व छात्र नेता उमर खालिद वही हैं जिनकी भूमिका आतंकवादी अफजल गुरु की बरसी मनाने के आयोजन में मानी जा रही है। उमर खालिद का संपर्क भारत के कट्टरपंथी समूहों के साथ कुछ अंतर्राष्ट्रीय एनजीओ से भी माना जा रहा है। दिल्ली दंगों के आरोपियों को बचाने के लिये राजनीति से लेकर न्यायलय तक वैसी ही भागदौड़ हुई जैसी अतंकवादी अफजल गुरु के प्रकरण से लेकर कासगंज, बहराइच और संभल में देखी गई थी।