बैकुंठ एकादशी - महात्म्य

09 Jan 2025 15:34:11
 
BAIKUNTHA EKADASHI
 
 
 
डॉ नुपूर निखिल देशकर - 
 
 
बैकुंठ एकादशी जिसे पुत्रदा एकादशी या मोक्षदा एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत पर्व है। यह मार्गशीर्ष (अग्रहायण) माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। अग्रहायण अर्थात् हिंदू पंचांग का नौवां मास है इसे अगहन का माह भी कहते हैं, ऋषि कश्यप ने इसी माह कश्मीर की रचना की थी। इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु के क्षीरसागर में अर्धांगिनी माता लक्ष्मी के साथ से शेषशैय्या में विराजित अद्भुत रुप का पूजन होता है। अतः यह व्रत भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी को समर्पित किया जाता है और मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से सुख सम्पदा के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है।
 
एक दंत कथा के अनुसार, अयोध्या के एक वैष्णव राजा अम्बरीष सदैव इस व्रत को रखते थे। एक बार तीन दिनों के उपवास के पश्चात् जब वह व्रत का पारायण (उपवास तोड़ने) करने जा रहे थे, तब ऋषि दुर्वासा उनके नगर के द्वार पर प्रकट हुए। राजा ने ऋषि का सम्मानपूर्वक स्वागत किया और उनसे भोजन करने का निवेदन किया जिसे ऋषि ने स्वीकार कर लिया। वह भोजन से पूर्व स्नान करने चले गए । उन्हें स्नान के पश्चात् आने में बहुत बिलंब हो गया। राजा अम्बरीष के उपवास तोड़ने का शुभ क्षण निकट आ गया था। वह दुविधा में पड़ गए, यदि दिन समाप्त होने से पूर्व वह पारायण नहीं करते तो उन्हें उपवास का फल नहीं मिलेगा। उन्होंने अतिथि देवो भव के भाव से दुर्वासा ऋषि के आने से पूर्व भोजन करने के स्थान पर थोड़ा जल ग्रहण कर लिया । जब ऋषि दुर्वासा वापस लौटे तो वे क्रोधित हो गए भगवान विष्णु जी के सुदर्शन चक्र ने उनकी रक्षा की।
 
भागवत पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने एक कुलीन किंतु अभष्ट्र ब्राम्हण अजामिल को इसी दिन मोक्ष प्रदान किया था। अजामिल ने अपने जीवन के अंत समय में अपने दसवें पुत्र नारायण के मोह में पड़कर मृत्यु पीड़ा से बचने उसे पुकारा था । वह उसके जीवन का अंतिम क्षण था , जब उसने "नारायण" का नाम लिया। भगवान विष्णु ने उसे उसके पापों से मुक्त कर बैकुंठ में स्थान दिया। मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से 100 अश्वमेध यज्ञों और 1000 राजसूय यज्ञों के बराबर पुण्य मिलता है। इस दिन निर्धनों को भोजन, वस्त्र और धन का दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन और सत्संग में शामिल होना जीवन को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देता है।
 
दक्षिण भारत के तिरुपति बालाजी मंदिर, श्रीरंगम मंदिर और बद्रीनाथ धाम में इस दिन बड़ी धूमधाम से उत्सव मनाया जाता है। भक्तों को वैकुंठ द्वारम (उत्तर द्वार/ विशेष द्वार) से प्रवेश कर गर्भगृह के निकट जाकर दर्शन करने का सौभाग्य मिलता है। इस व्रत के प्रभाव से मनोवांछित फल की प्राप्ति , पापों का नाश और आत्मा की शुद्धि, परिवार में सुख-शांति और समृद्धि तथा मृत्यु के उपरांत बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती हैं।
 
वैदिक पंचांग के अनुसार, पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 09 जनवरी को दोपहर 12 बजकर 22 मिनट पर प्रारंभ होगी और इसका समापन 10 जनवरी को सुबह 10 बजकर 19 मिनट पर होगा। दसवीं तिथि के साथ एकादशी के व्रत का विधान नहीं है और सनातन धर्म में सूर्योदय के पश्चात तिथि की गणना की जाती है अतः बैकुंठ एकादशी का व्रत 10 जनवरी को रखा जाएगा।
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